हवलदार अजीत सिंह की स्मृति में वीर चक्र (पी) सेना मेडल
आईपीकेएफ डायरीज़ भारतीय शांति सेना (आईपीकेएफ) में श्रीलंका में लड़ने वाले बहादुरों/नायकों के बारे में विशेष रूप से लिखे गए लेखों का एक संग्रह है।
कठिन स्थान, गर्म और आर्द्र मौसम की स्थिति, पीने के पानी जैसी बुनियादी चीज़ की कमी (कपड़े के माध्यम से कुलम के पानी को फ़िल्टर करके पीना आम बात थी) ।कुछ ऐसी कठिनाइयाँ हैं जिनका सामना हमारे सैनिकों ने श्रीलंका में अपने कार्यकाल के दौरान किया था।
यदि कारगिल विषम ऊंचाइयों पर बैठे दुश्मन के साथ विपरीत परिस्थितियों में लड़ाई थी, तो श्रीलंका में ऑपरेशन पवन एक अलग तरह की चुनौती थी। ऐसे में आईपीकेएफ का हिस्सा रहे हमारे फौजी के वीरतापूर्ण कार्यों के बारे में और अधिक उल्लेख करना जरूरी है।
इस तरह का ब्लॉग जिसमें ऐसी जानकारी हो जो किताब के रूप में पहले से ही उपलब्ध हो, आम जनता और सूचना के स्रोत के बीच की खाई को नापने का एक प्रयास है। ऐसा इसलिए है क्योंकि हर कोई किताबें पढ़ने में सक्षम नहीं होता या पसंद नहीं करता है, जबकि सोशल मीडिया पर स्क्रॉल करना तुलनात्मक रूप से आसान और संभव है।
इस संधर्ब में यह मेरा दूसरा प्रयास है और हवलदार अजीत सिंह वीर चक्र (पी) सेना मेडल, 10 पैरा एसएफ के बारे में है, जो वीर चक्र से सम्मानित होने वाले अपने गांव के पहले व्यक्ति बने।
मेरा पिछला आलेख सूबेदार मोड़ा राम बीरड़ा सेना मेडल 10 पैरा एसएफ के बारे में था।
अजीत सिंह का जन्म 7 जनवरी 1952 को हरियाणा के रेवाड़ी जिले के पुंसिका गांव में हुआ था। उनके पिता दलीप सिंह यादव भी पूर्व सैनिक थे। अजीत ने अपनी मैट्रिक तक की पढ़ाई बी एस अहीर हाई स्कूल, रेवाडी से की थी। वे 6 जुलाई 1972 को 20 साल की उम्र में पैराशूट रेजिमेंट में रंगरूट के रूप में भर्ती हुए।
प्रशिक्षण के सफल समापन के बाद, वह 10 पैरा का हिस्सा बन गए, जिसे डेजर्ट स्कॉर्पियन्स के नाम से भी जाना जाता है। 28 अगस्त 1989 को, आईपीकेएफ के अंतर्गत हवलदार अजीत की यूनिट को अलमपिल-मुल्लईतिवु सड़क पर सर्च एंड डिस्ट्रॉय अभियान चलाने का काम सौंपा गया था। हवलदार अजीत सिंह दस्ते के कमांडरों में से एक थे और उनके सैन्य कमांडर ने इन सैनिकों की आवाजाही को कवर करने के लिए एक रॉकेट लॉन्चर के साथ अपने दस्ते को तैनात किया। सैनिक जल्द ही LTTE उग्रवादियों की ओर से छोटे हथियारों और रॉकेटों की भारी गोलीबारी की चपेट में आ गए
हवलदार अजीत सिंह ने जवाबी कार्रवाई की, तुरंत स्थिति का आकलन किया और आतंकवादियों पर लगातार और प्रभावी गोलीबारी करने के लिए अपने दस्ते को तैनात किया। इस जवाबी हमले से LTTE का ध्यान भटक गया जिससे उनकी गोलाबारी कम हो गई। इसके पश्चात दोनों ओर से हुई भीषण गोलीबारी में एक रॉकेट लॉन्चर टुकड़ी का पैराट्रूपर घायल हो गया और टुकड़ी कमांडर वीरगति को प्राप्त हो गए।
नतीजतन, हवलदार अजीत ने यह काम अपने ऊपर ले लिया और लॉन्चर उठाकर फायरिंग करने लगे। कुछ उग्रवादी मारे गए, कुछ घायल हो गए और उग्रवादी गोलीबारी करते हुए पीछे हटने लगे। इस गोलीबारी में हवलदार अजीत सिंह को छाती में गोली लगी और वह वीरगती को प्राप्त हुए।
उनके विशिष्ट साहस, वीरता और सर्वोच्च बलिदान के लिए उन्हें मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
श्रीलंका में उनके कार्यकाल के दौरान ही उन्हें पहले सेना पदक से सम्मानित किया गया था।वह उस टीम का हिस्सा थे जो लेफ्टिनेंट कर्नल दलवीर सिंह के साथ कमांडो की टीम को बचाने और निकालने के लिए गई थी । कमांडो की टीम जाफना हेली ड्रॉप ऑपरेशन में शामिल थी, लेकिन लिट्टे की संख्या भारी थी और कमांडो की टीम पर घात लगाकर हमला किया गया था और वे बचाव का इंतज़ार कर रहे थे।
।यह वही ऑपरेशन था जिसके लिए लेफ्टिनेंट कर्नल दलवीर को वीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
श्रीलंका जाने से पूर्व, हवलदार अजीत अपने चाचा, पूर्व कैप्टन जगदेव सिंह से आशीर्वाद लेने गए। कैप्टन जगदेव ने उन्हें यूं ही बताया था कि पुंसिका के फौजियों ने लगभग सभी युद्धों में भाग लिया था, लेकिन गांव में अभी तक कोई वीर चक्र नहीं आया था। इस पर हवलदार अजीत ने बड़ी विनम्रता से जवाब दिया कि इस बार गांव में वीर चक्र भी आएगा.वीर चक्र आया लेकिन वीर के बिना।
हवलदार अजीत सिंह वीआरसी एसएम जोधपुर मिलिट्री स्टेशन में एक मूर्ति के रूप में जीवित हैं। पुंसिका, रेवाडी के पहले वीर चक्र पुरस्कार विजेता कई अहीरों के लिए प्रेरणा हैं।जबकि बहादुरी के हर कार्य का उल्लेख पल्टन की war डायरी में किया जाता है, हर बहादुर को स्मारक में जगह मिलती है लेकिन हर नायक की कहानी ज्ञात नहीं होती है।
कई अनकही कहानियाँ। कई अज्ञात नायक।
जय हिन्द!
सूचना श्रेय : श्री रमेश शर्मा
https://www.tribuneindia.com/news/archive/haryanatribune/news-detail-691567
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